स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कबीरधाम के तत्वावधान में नवा बछर जोहार, सियान सम्मान और काव्यांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया-
कवर्धा। स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कबीरधाम के तत्वावधान व घनश्याम सोनी के संयोजकत्व में साँई मंदिर कसारीडीह दुर्ग में, नवा बछर जोहार, सियान सम्मान और काव्यांजलि कार्यक्रम का बहुत सुन्दर आयोजन किया गया। प्रसिद्ध कलाकार रंगकर्मी फिल्म राईटर संवाद राईटर स्वर्गीय गिरवर दास मानिकपुरी जी को काव्यांजलि अर्पित की गई। दो सत्र में आयोजित इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र की शुरुआत छत्तीसगढ़ महतारी की पूजा अर्चना के साथ हुई। खास पहुना उत्तम तिवारी छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्देशक व संगीतकार, अरुण कुमार निगम वरिष्ठ साहित्यकार व संस्थापक छंद के छ, जनाब मीर अली मीर लोकप्रिय गीतकार, आलोक नारंग वरिष्ठ ग़ज़लकार, सूर्यकांत गुप्ता वरिष्ठ साहित्यकार, बलराम चंद्राकर वरिष्ठ गीतकार, घनश्याम सोनी वरिष्ठ साहित्यकार और स्व. गिरवरदास मानिकपुरी जी की धर्मपत्नी श्रीमती रेखाबाई मानिकपुरी ने मिलकर स्व. गिरवरदास मानिकपुरी के तैलचित्र में माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन किया। उपस्थित कला और साहित्य साधकों ने पुष्पांजलि अर्पित कर स्व. मानिकपुरी जी की स्मृतियों को याद किया।
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स्वागत अभिनंदन के पश्चात मंच के अध्यक्ष कुंजबिहारी साहू ने भोरमदेव साहित्य सृजन मंच का परिचय कराते हुए स्वागत उद्बोधन दिया तथा गिरवर दास मानिकपुरी जी की स्मृतियों को याद किया।अरुण कुमार निगम ने गिरवर दास मानिकपुरी को याद करते हुए कहा- बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो मिलते हैं तो उम्र अनुभव और लोकप्रियता का अंतर नहीं रह जाता, स्व. मानिकपुरी जी उन्ही मूर्धन्य व्यक्तित्वों में से थे। उत्तम तिवारी ने बताया कि मानिकपुरी जी के साथ उनके परिवार का संबंध बिल्कुल घरेलू है, उनके लिखे सौ से भी अधिक गानों को उन्होंने संगीतबद्ध किया है। शायर आलोक नारंग ने स्व. मानिकपुरी को याद करते हुए कैफी आजमी के शेर कहे- रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई। जब जनाब मीर अली मीर ने अपने गीतों के माध्यम से स्व. मानिकपुरी जी की स्मृतियों को याद किया तो श्रीमती रेखाबाई मानिकपुरी की आंखों के बाँध छलक पड़े। घनश्याम सोनी ने सौ-एक सौ बीस किलोमीटर दूर से आकर दुर्ग में कार्यक्रम करने के लिए भोरमदेव साहित्य सृजन मंच का आभार जताया और अपनी स्मृतियों को साझा किया। सुखदेव सिंह अहिलेश्वर ने भावांजलि के शब्द कहे- गिरवर जी के गुँथे शब्द माला अड़बड़ ममहावत हावय, चित्रगुप्त पखवरिया होगे पढ़-पढ़ के सुख पावत हावय। वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत गुप्ता, बलराम चंद्राकर, ममता साहू, राजकुमार मसखरे, मिनेश कुमार साहू, और ज्ञानूदास मानिकपुरी ने भी अपनी स्मृतियों को साझा किया।
कार्यक्रम के दूसरे और अंतिम सत्र में उपस्थित कवियों ईश्वर साहू बंधी, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, यशपाल जंघेल, गायत्री श्रीवास अभिलाषा, मिनेश कुमार साहू, बैकुंठ महानंद, टीकाराम देशमुख, टी.आर. कोसरिया, दौलत राम साहू, चंपा साहू, राजनारायण श्रीवास्तव, बोधन सिंह चंदेल, चिंताराम धुर्वे, शिवप्रसाद साहू, आनंद मरकाम, चिंताराम पटेल, अनिल राय, पी.के. कमाल, अश्वनी कोसरे, देवचरण ध्रुव, संजय कुमार साहू, रितेश साहू, अमृतदास साहू, ज्ञानूदास मानिकपुरी, हेमसिंग साहू, राजकुमार मसखरे, तुलेश्वर सेन, रामकुमार साहू, लोकेश मानिकपुरी, संगीता मानिकपुरी, ममता साहू, धर्मेंद्र डहरवाल, पवन साहू और घनश्याम कुर्रे ने काव्यपाठ किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र का संचालन हेमसिंग साहू मास्टर और अश्वनी कोसरे रहँगिया ने किया तथा आभार प्रदर्शन ज्ञानूदास मानिकपुरी ने किया।