मन भुइयाँ सोंच समुंदर
मन भुइयाँ सोंच समुंदर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
ऊँच-नीच उतार-चढ़ाव
जिनगी मौसम धूप-छाँव
जाड़ा बारिस संग म पतझर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
कोनो देखयँ बाग-बगइचा
कोनो गरीबी ले उबरे के रद्दा
आनी-बानी के मर्ज़ी मंज़र…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
प्रेम जब सर चढ़ के बोलय
मधु रस म जहर ल घोरय
करय चरित्र के हत्या भर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
जीवन म हो एक लछमन रेखा
झाँकय कोई झन बाहिर देखा
खोट दिखय न पखउरा के ख़ंजर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
एक कुआँरा एक कुआँरी
चौखट लांघयँ फोरयँ दुआरी
आगी लगावयँ कुल के भीतर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
नस-नस म उतर गे नसा
भाई भतीजा बैरी सखा
आरुग हो ही बस दू-तीन घर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
सब जीव जग म फूलयँ-फरयँ
मनखे मनखे लड़यँ मरयँ
तृस्ना मांगय डेना अउ अंबर…!
दुख-सुख तृस्ना इँकरे अंदर…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़