किसको गले लगाएंँ- तृष्णा लालच, छल प्रपंच की, प्रवृत्तियाँ जलाएँ ! कवि- जोहन भार्गव जी

किसको गले लगाएंँ…!!             किसको गले लगाएंँ…!! तृष्णा लालच, छल, प्रपंच…