किसको गले लगाएंँ…!!
किसको गले लगाएंँ…!!
तृष्णा लालच, छल, प्रपंच की, प्रवृत्तियाँ जलाएँ !
अंतर्मन में, निष्ठा, सत्य की, सद्भावना बचाएँ !!
सूखी लकड़ियाँ, ला सहेज कर,
होली जलाना छोड़ें
ये निर्जीवता के प्रतीक,
क्यों इनके पीछे दौड़ें
अंतस की ओछी, और दकियानूसी सोच मिटाएँ !
अंतर्मन में, निष्ठा, सत्य की, सद्भावना बचाएँ !!
कपटी होलिका, तुच्छ राक्षसी,
मन में इसका वास
सत्य की जीवित, निज भतीजे को,
करना चाहे राख
अपनी दुष्ट मनःवृत्ति को, मन ही मन, सुलगाएँ !
अंतर्मन में, निष्ठा, सत्य की, सद्भावना बचाएँ !!
जग में निरंतर, बढ़ी जा रही,
असुर जनों की फौज
निष्ठा अधमरी, सत्य है कुंठित,
और झूठों की मौज
अपनापन ही नहीं जगत में, किसको गले लगाएंँ !
अंतर्मन में, निष्ठा, सत्य की, सद्भावना बचाएँ !!