छत्तीसगढ़ी आलेख- करा मन के करेजा चानी…!! कवि जोहन भार्गव जी
छत्तीसगढ़ म हर जाति अउ समाज म फिरका वादी बेवस्था अइसन बने हे के जेला कहि सकत हन, “मेकरा के जाला” ! हर समाज अउ फिरका म “मेकरा कस मनखे” ल मुखिया बनाय जाथे ! कोनो समाज म चुनई होथे, त कोनो समाज म माटी ल माधव मान ले थें ! समाज के बने पढ़े लिखे अउ नउकरी चाकरी वाले मनखे, चाहे बने गउँटिया कस मनखे ल माई मेकरा मान ले थें ! तिहाँ ले ए मेकरा मन के फांदा बिनई सुरू हो जाथे ! मेकरा अपन बनाय जाल के एक ताग ल, गोड़ म छुए, जाला के सिवाना ले दुरिहा म लुकाय, कलेचुप बइठे, टुकुर-टुकुर निहारत रथे ! जइसनहे, एको ठन कीरा ओकर फांदा म झँपाथे, वो कीरा थोरिक बेर कलपथे तड़फड़ाथे तिहाँ ले अल्लरिया जाथे ! कीरा के अल्लारियाय के बाद, मेकरा ओला चुहुक-चुहुक के खा डारथे ! अइसने समाज के मुखिया मन, सगा मन के गलती ल सुन के ओला चेतायँ नहीं, बल्कि बइठक म ओकर चरचा चला के, ओला समाज ले सिद्धा बाहिर के रद्दा देखा दे थें ! फेर वो परिवार जब समाज म मिले के कोसिस करथे, तिहाँ ले डाँड़ के नीलामी कस बोली लगथे ! अउ जतका कन रुपिया के बोली ल समाज के अदालत म समरथन मिलथे, ओतका कन पइसा ओला पटाय बर पड़थे ! जब तक नईं पटाही तब तक ओकर परिवार हर, समाज ले अलग रइथे ! अउ पटा देहे के बाद ओ परिवार फेर पानी कस फरी हो जाथे ! अइसन समाजिक बेवस्था, जेमा समाज के मनखे ल कोनो किसिम के सहयोग नईं मिलय लेकिन जेन परिवार समाज ले बाहिर होगे, ओ परिवार ह सब के बइरी हो जाथे ! ओ परिवार के बिरोध म समाज के जम्मे मेकरा कस मनखे मन सनीचर के साढ़े साती कस ओ परिवार ल पेरे लगथे, अउ राहू केतु कस ओकर सुख सांती ल लीले लगथे ! समाजिक एकता ह कहे भर बर ए ! कमजोरहा परिवार के पूछ पूछारी कोनो नईं करयँ ! मैं जम्मे जात समाज के अघुवा मन मेर निवेदन करत हवँ, के भगवान ल घलो थोरकिन डेराय करव ! अंधेर करे म कोनो के उन्नति नईं होवय ! न करइया के, न सहइया के !! परिवार अउ समाज के तरक्की उच्चतम सिक्षा, बढ़िया बेवसाय अउ आपसी सहयोग करे म ही हो सकथे ! अइ सोच हर सोरा आना सच ए ! आजकल समाज के मेकरा मन,एक ठन अउ उदिम ल सीखे हावय ! सगोत्र बिहाव माने एके परिवार के नर नारी, जेला आपस म भाई-बहिनी, कका-भतीजी, माने जाथे ईंकरो अनैतिक प्रेम संबंध ल एक लाख रुपिया अउ एक पतरी भात खा के स्वीकारे लग गे हें ! (जबकि अइसन बिहाव ल कानून घलो ह नईं मानय) ! ए समय समाज के “मेकरा मन के करेजा चानी” छप्पन ईंच के होगे हावय, जेमा दाई-ददा के आँखी म धुर्रा छिंचइया, बिस्वासघाती, घर ले भाग के, जात ले कुजात हो के, दुलही दुलहा बन के, संग रहइया सुतइया नर नारी मन बर, भारी मया पलपलावत हे ! काबर, के मेकरा मन बर, ईमन सोन के अंडा परइया कुकरी ए ! समाज के मेकरा मन, पइसा बर अतका भुखाय हावय, के नैतिकता, अउ मान-मरियादा ल, सुरसा राक्छसी असन, लील-लील के पचोवत हें !
लाख भर रुपिया पतरी भर भात !
कहाँ के भाँवर, कहाँ के बरात !!
श्री जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)
मो.न:- 79740 25985