जब महाराष्ट्र म मराठी, गुजरात म गुजराती, बिहार म बिहार, ओडिशा म उड़िया भासा म पढ़ाई हो सकथे त छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भासा म पढ़ाई काबर नइ हो सकें??

जब महाराष्ट्र म मराठी, गुजरात म गुजराती, बिहार म बिहार, ओडिशा म उड़िया भासा म पढ़ाई हो सकथे त छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भासा म पढ़ाई काबर नइ हो सकें??


छत्तीसगढ़ म सबसे बड़े बाधा ये आय कि अपन भाखा ल “सिरिफ बोली” कहिके हांसी-ठट्ठा म उड़ा दे जाथे। जबकि सच ये आय कि छत्तीसगढ़ी भाखा म अपन व्याकरण, अपन शब्दकोश, अपन साहित्य अउ अपन गढ़न हे।

ये सवाल सिरिफ सवाल नइ आय, ये छत्तीसगढ़िया मन के मान के पीरा आय। दूसर राज्य के मन अपन भाखा म गर्व करथें, अपन लइका मन ल अपन महतारी भाखा म पढ़ावत हवंय, फेर हमर छत्तीसगढ़ म आज तक ये ह हकीकत नइ बन पाय। महाराष्ट्र म मराठी पढ़ाई के माध्यम आय, गुजरात म गुजराती, बिहार म भोजपुरी, मगही, मैथिली जइसने भाखा मन ल सम्मान मिलथे, अउ ओडिशा म उड़िया भाखा ल पूरा शैक्षिक व्यवस्था म महत्व मिलथे। फेर जब छत्तीसगढ़ म लइका मन अपन दाई-ददा, नाना-नानी, ले छत्तीसगढ़ी भाखा सीखथें, त ओ भाखा ल पढ़ई-लिखई म काबर शामिल नइ करे जा सकत हे ?

छत्तीसगढ़ी भाखा हमर अस्मिता के आधार आय। हमर लोककथा, गीत, पंडवानी, चंदैनी, पंथी, करमा, सबो कुछ छत्तीसगढ़ी भाखा म बसे हे। घर-गांव ले शहरी मोहल्ला तक ये भाखा जिन्दा हे। जब लइका मन घर म छत्तीसगढ़ी म बोलथें, फेर स्कूल म जाके उनला दूसर भाखा म पढ़ई करना पड़थे, त ओमन के ज्ञान म दूरी आ जाथे। शिक्षा मनोविज्ञान कहिथे कि लइका मन ल जेन भाखा म घर-गांव म बने समझ होथे, ओही भाखा म पहिली शिक्षा मिलही त ओमन ज्यादा तेज गति ले सीखही।

दूसर राज्य मन ये बात ल समझ के अपन भाखा ल स्कूल म जोड़ ले हवंय। महाराष्ट्र के लइका मराठी म पढ़त हवय, फेर उहां इंग्लिश अउ हिंदी ल घलो पढ़थें। ओडिशा के लइका उड़िया म लिखथें, फेर विज्ञान अउ टेक्नोलॉजी म घलो आगू हवय। एकर मतलब ये आय कि मातृभाखा म पढ़ई करे ले कोनो पिछड़त नइ, बलके अउ मजबूत बनथे।

छत्तीसगढ़ म सबसे बड़े बाधा ये आय कि अपन भाखा ल “सिरिफ बोली” कहिके हांसी-ठट्ठा म उड़ा दे जाथे। जबकि सच ये आय कि छत्तीसगढ़ी भाखा म अपन व्याकरण, अपन शब्दकोश, अपन साहित्य अउ अपन गढ़न हे। पंडवानी जइसने अमर लोकगाथा, ददरिया जइसने मधुर गीत, सबो कुछ छत्तीसगढ़ी म हवय।

अगर सरकार अउ समाज चाहय त छत्तीसगढ़ी म पढ़ई सुरु करना कोनो मुस्किल नइ आय।

1. प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़ी म कराय जा सकथे।
2. छत्तीसगढ़ी भाखा ल पाठ्यक्रम म अनिवार्य कर देवय।
3. शिक्षक मन ल छत्तीसगढ़ी म पढ़ई बर प्रशिक्षित कराय जावय।
4. छत्तीसगढ़ी साहित्यकार अउ लोककला के साधक मन ल शिक्षा नीति म शामिल कराय जावय।

आज छत्तीसगढ़ी ल स्कूल म जगह नइ मिलही, त धीरे-धीरे आने वाले पीढ़ी ल अपन भाखा ले दूरी हो जाही। अपन अस्मिता, अपन पहिचान, अपन गर्व सब ल खो देहू। अउ दूसर राज्य मन जऊन रस्ता अपनाइस हवंय, ओही रस्ता म हमर राज्य घलो चल सकथे।

छत्तीसगढ़ी म पढ़ई सिरिफ भाखा के बचाव नइ, ये आत्मसम्मान के सवाल आय। जब महाराष्ट्रिया, गुजराती, बिहारी अउ उड़िया अपन भाखा म गर्व करथें, त छत्तीसगढ़िया काबर हिचकिचावय? हमर लइका मन जऊन भाखा म अपन लोरी सुनथें, ओही भाखा म शिक्षा पावंय – येही तो सबले बड़े गरिमा के बात होही।

छत्तीसगढ़ी म पढ़ई होही त छत्तीसगढ़ म भाखा अउ संस्कृति अउ मजबूत होही, लइका मन अपन माटी म गर्व करही, अउ राज्य अपन असली पहिचान ले आगे बढ़ही।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो.न- 7722906664

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